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Tuesday, July 03, 2007

कभी नज़रें मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी नज़रें चुराने में ज़माने बीत जाते हैं
किसी ने आंख भी खोली तो सोने कि नगरी में
किसी को घर बनने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी काली सेयाह रातें हमें पल पल कि लगती हैं
कभी इक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी खोला घर का दरवाज़ा खडी थी सामने मंज़िल
कभी मंज़िल को आने में ज़माने बीत जाते हैं
एक एक पल में टूट जाते हैं उम्र भर के वोह रिश्ते
वोह रिश्ते जो बनने में ज़माने बीत जाते हैं .

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