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Sunday, August 12, 2007

जीं चाहता है

उन काले किये पन्नो को फिर पलटने को जीं चाहता है,
आज खुद से मेरा लड़ने को जीं चाहता है,

यूं तो उन गलियों में दर्द के सिवा कुछ नही मिला मुझको,
आज उन्ही लम्हों के रास्तों से गुमशुदा हो कर गुज़रने को जीं चाहता है,

किनारों पर तो नही वो तूफानों में मेरा साथ निभाता है,
रो रोकर इन किनारों को आज रोकने को जीं चाहता है,

मुझको खबर है एक मासूम चिंगारी है मोहब्बत जो एक दिन मुझको जला देगी,
आज उसके प्यार कि आग में खुद को झोकने को जीं चाहता है,

उसकी नाजायज़ चाहतों ने हमारी मोहब्ब्बत को कहीँ का नही रखा,
इस गिरी हुई मोहब्बत को फिर एक बार उठाने को जीं चाहता है,

ठंड सी लगती है मेरे चहरे को आँसू के गीलेपन से,
इन आश्कों को सर्दियों की धुप में सूखोने को जीं चाहता है,

वो लाश को मेरी बाँहों में ले लेकर घूमता है,
हर जन्म में यूं ही सोये रहने को जीं चाहता है,

वोह मिला आज बरसों बाद लेकिन कुछ कमी सी है,
बस अब इस पल के बाद हमेशा के लिए बिछड़ जाने को जीं चाहता है,

हम दोनो तन्हा है कोई नही इस घर में,
इस रात में बस यंही ठहर जाने को जीं चाहता है,

बड़ी मुश्किल से संवरी हूँ में कई बार टूटने के बाद,
चांद पल उसके साथ गुज़र कर फिर बिखर जाने को जीं चाहता है.

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