आज के दौर में दोस्त ये मंज़र क्यूँ है.
ज़ख्म हर सर पे हर हाथ में पत्थर क्यूँ है
जब हकीकत है कि हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीँ मस्जिद कहीँ मंदिर क्यूँ है
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है
जिन्दगी जीने के काबिल ही नहीं अब ए दोस्त
वर्ना हर आंख में अश्कों का समंदर क्यूँ है
ज़ख्म हर सर पे हर हाथ में पत्थर क्यूँ है
जब हकीकत है कि हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीँ मस्जिद कहीँ मंदिर क्यूँ है
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है
जिन्दगी जीने के काबिल ही नहीं अब ए दोस्त
वर्ना हर आंख में अश्कों का समंदर क्यूँ है
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