आँख प्यासी है कोई मंजर दे
इस जज़ीरे को भी समंदर दे
अपना चेहरा तलाश करना है
गर नहीं आईना तो पत्थर दे
बंद कलियों को चाहिए शबनम
इन चिरागों में रोशनी भर दे
पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतार
इस सदी को कोई पयंबर दे
कहकहों में गुज़र रही है हयात
अब किसी दिन उदास भी कर दे
फिर न कहना के खुदकुशी है गुनाह
आज फुरसत है फैसला कर दे।
इस जज़ीरे को भी समंदर दे
अपना चेहरा तलाश करना है
गर नहीं आईना तो पत्थर दे
बंद कलियों को चाहिए शबनम
इन चिरागों में रोशनी भर दे
पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतार
इस सदी को कोई पयंबर दे
कहकहों में गुज़र रही है हयात
अब किसी दिन उदास भी कर दे
फिर न कहना के खुदकुशी है गुनाह
आज फुरसत है फैसला कर दे।
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