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Monday, August 27, 2007

जिन्दगी के लिए ही वक़्त नही

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नही
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
जिन्दगी के लिए ही वक़्त नही

माँ कि लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नही
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक़्त नही

सारे नाम Mobile में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक़्त नही
गैरों कि क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नही

आंखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नही
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नही

पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड,
कि थकने का भी वक़्त नही
पराये एहसासों कि क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नही

तू ही बता जिन्दगी,
इस जिन्दगी का क्या होगा,
कि हर पल मारने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नही......

2 comments:

dockaul said...

splendid commentary on the current rat race.. kudos..

Pankaj said...

VEry good.