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Saturday, March 29, 2008

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

छिप छिप अश्रु बहाने वालों
मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

सपना क्या है ? नयन सेज पर,
सोया हुआ आंख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जगे कच्ची नींद जवानी
गीली उम्र बनाने वालों!
डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आंसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुयी तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों! फटी कमीज़ सिलाने वालों!
कुछ दीपो के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धुप की धोती
वस्त्र बदल कर आने वालों ! चाल बदलकर जाने वालों!
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है

लाखों बार गगरियाँ फूटीं
शिकन आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं
चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उम्र बढाने वालों! लौ की आयु घटने वालों !
लाख करे पतझड़ कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन
लुटी लेकिन गंध फूल की
तूफानों तक ने छेदा पर
खिड़की बंद हुयी धुल की
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धुल उडाने वालों
कुछ मुखडों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है

छिप छिप अश्रु बहाने वालों
मोती व्यर्थ लुटाने वालों !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

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