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Sunday, August 12, 2007

कोई सह लेता है कोई कह लेता है

क्यों कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

कोई सह लेता है कोई कह लेता है

क्योंकि ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सिखा दिया हमें

यहाँ हर ठोकर देने वाला पत्थर नही होता

क्यों ज़िंदगी की मुश्क़िलों से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर

ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता

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